Saturday 1 September 2018

History Class 6 ( an overview) - I

CLASS 6th History (Overview)


  • काबरा पहाड़, सिंघनपुर गुफा रायगढ़ जिले में स्थित है । 
  • महंत घांसीदास संग्रहालय रायपुर में किरारी गांव बिलासपुर जिले से प्राप्त काष्ठ स्तंभ को रखा गया है ।
  • चितवाडोंगरी - दुर्ग तथा डौंडीलोहारा की गुफाओं में भी चित्र मिले हैं । 
  • ये चित्र रंगीन हैं तथा इनमें छिपकली,घड़ियाल तथा अन्य पशुओं के चित्र हैं ।
  • सिंघनपुर की गुफाओं में गहरे लाल रंग के चित्र हैं ,मनुष्य की आकृतियां बनीं हैं तथा आड़ी-तिरछी लकीरें भी बनाई गई हैं । शिकार करने का चित्र , सीढ़ीनुमा चित्रों की विशेषता हैं । 
  • यहां उल्लेखित है कि सबसे पहले कुत्ता पाला गया था ।
  • सिंधु घाटी सभ्यता - लगभग 4500 वर्ष पहले यह सभ्यता 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू. तक विकसित रही। इस संस्कृति से संबंधित लगभग 250 से अधिक जगहें भारत में मिली हैं जिसमें प्रमुख हैं-लोथल, धौलावीरा (गुजरात), कालीबंगा (राजस्थान), रोपड़ (पंजााब), आलमगीरपुर (उप्र)। 
  • सिंधु सभ्यता का फैलाव अफगानिस्तान, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था। 
  • हड़प्पा की खुदाई 1921 में दयाराम साहनी द्वारा, मोहनजोदड़ो की खुदाई 1922 में राखालदास बनर्जी द्वारा किया गया था।  
  • मोहनजोदड़ो में स्नानागार मिलें हैं जिसकी माप लंबाई 12 मी॰ चौड़ाई 7 मी॰ गहराई 2‐5 मी॰ थी। 
  • हड़प्पा में अन्नागार मिलें हैं, पशुपति की मोहरें मिलीं है जिसमें शेर, हाथी, गेंडा, हिरन की प्रतिकृति है।
  • सिंघु धाटी की फसलें- गेंहू, जौ, तिल, कपास ज्ञात घातुएँ- ताँबा, पीतल, राँगा, शीशा, कांसा, सोना था। 
  • विदेशी व्यापार मुख्य रूप से मेसोपोटामिया के साथ होता था।  
  • विदेशी व्यापार मुख्य रूप से जल मार्ग से तथा आंतरिक व्यापार जल और थल दोनों से होता था। 
  • लोथल में नाव के नमुने एवं बंदरगाह के अवशेष मिलें हैं। 
  • यहां स्त्री एवं पुरूष दोनों ही श्रृंगार करते थे, खुदाई से श्रृंगारपेटी तथा आभुषणों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। 
  • मुहरों में पीपल व पशु के चित्र ज्यादातर होते थे, पीपल प्रमुख पूजनीय वृक्ष माना जाता था। 
  • सिंधुवासी मृतकों का अंतिम संस्कार भी करते थे, संभवतः दफनाने की प्रथा थी। 
  • उनकी लिपि दाईं से बांई ओर होती थी और आज तक नहीं पढ़ी जा सकी  है। 
  • उनकी नगर योजना में चौड़ी और समकोण सड़कें होती थी जिनके किनारों पर नालियां और दोनो ओर भवन होते थे। उॅचे हिस्से में परकोटे वाले प्रमुख भवन थे जबकि निचले हिस्सों में सघन बस्ती होती थी। 
  • लोथल के समान ही छ‐ग‐ में रायपुर जिले के पांडुका ग्राम के पास सिरकट्टी नामक स्थान पर, पैरी नदी में प्राचीन बंदरगाह के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां डाकयार्ड अर्थात् व्यापारिक नाव खड़े होने की गोदी है। यह गोदी चट्टानों को काटकर  बनाई गई थी जो 5-6 मीटर चैड़ी है।अनुमान है कि यह स्थान बंदरगाह के साथ-साथ विपणन केंद्र भी था, यहाॅ से भी देश विदेश में व्यापार होता था। यह स्थान लोथल के बाद का है पर उसी के जैसा है। 

  • वैदिक काल- (2000 ई‐पू‐-1500 ई‐पू‐) लगभग 3500-4000 वर्ष पूर्व सिंघु-सरस्वती के मैदान में विकसित, इसको विकसित करने वाले स्वयं को आर्य कहते थे, आर्य का अर्थ - ’’ श्रेष्ठ या सुसंस्कृत’’। 
  • वैदिक साहित्य विश्व के प्राचीनतम साहित्यों में से एक हैं, इनकी भाषा संस्कृत है। 
  • प्रमुख 4 वेद हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद,अथर्ववेद(क्रमानुसार)। 
  • सम्पूर्ण वैदिक साहित्य श्रुति साहित्य कहलाता है जो कि गुरू द्वारा शिष्य को मौखिक गुरू मंत्र सिखाये जाने से बना है, शिष्य इन मंत्रो को सावघानीपूर्वक कंठस्थ करके पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते थे। 
  • ऋग्वेद सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है, इसके मंत्रो को सुक्त कहा जाता है, सुक्त का अर्थ ’’अच्छी तरह बोला ’’ गया होता है। 
  • ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल- इस काल में लोग सप्तसिंधु प्रदेश में रहते थे। अर्थात् सिंधु एवं उसकी सात सहायक नदियों का क्षेत्र। 
  • प्रमुख व्यवसाय- पशुपालन, खेती भी करते थे परंतु प्रमुखतया पशुपालन था, फसल में प्रमुख रूप से जौ उगाते थे। गायें प्रमुख पुंजी थीं, रथ के लिए घोड़े का पालन करते थे इसके अलावा कुत्ता, भेड़ व बकरियां भी पाली जाती थीं। 
  • रथकार प्रमुख कारीगर थे, लोग लकड़ी एवं मिट्टी के घरों में रहते थे तथा गौशालायें भी होतीं थीं। पिता परिवार का मुखिया होता था । 
  • आर्य महिलायें सूत कातती थीं एवं कपड़े बुनती थीं। महिलाओं का सम्मान था, वे शिक्षित होंती थी और उन्होंने कई सुक्तों की रचनायें की थी साथ ही उनकी भागीदारी धार्मिक अनुष्ठानों में भी होती थीं। 
  • एक गांव में सभी रिश्तेदार होते थे, गांव से मिलकर ’’जन’’ बनता था जैसे- पुरूजन, कुरूजन, यदुजन आदि। जन प्रमुख ’राजन’ कहलाता था, जो वंशानुगत नहीं होते थे बल्कि चुने जाते थे। 
  • इस समय कुछ लोग संस्कृत नहीं बोलते थे तथा रहन सहन आर्यों से अलग था उनको ’’ दस्यु, दास या पाणि’’ कहा जाता था। 
  • कभी-कभी आर्यो तथा दस्युओं में युध्द भी होता था परंतु उनमें छुआछूत एवं जांतपांत नहीे था। यहां गणतांत्रिक व्यवस्था थी। 
  • चरागाह, पशुओं आदि के लिए जन का आपस में युध्द होता था, विजेता राजन पराजित जन की सम्पदा अपने जन में बांट देता था। उनकी अपनी कोई सेना नही थी परंतु जरूरत के समय जन के सभी पुरूष मिलकर युध्द में भाग लेते थे। 
  • प्रमुख देवता - इन्द्र, अग्नि, वरूण, सोम आदि। वैदिक सुक्तों में देवताओं की स्तुति के अलावा प्रकृति वर्णन, विश्व की उत्पत्ति भी शमिल हैं। 
  • संस्कृत भाषा, वैदिक साहित्य, गणतांत्रिक व्यवस्था आदि इस संस्कृति की देन है। 

  • उत्तर वैदिक काल - इस काल में वैदिक संस्कृति सिंधु-सरस्वती नदियों के क्षेत्र से आगे बढकर गंगा-जमुना नदी के मैदान तक फैल चुकी थी। यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद की रचना इसी काल में हुई थी। कृषि का विकास हुआा, उद्योग-धंधों का विकास हुआ। 
  • जन के लोग जहां रहते थे उसे जनपद कहा जाने लगा था, जैसे-कुरू जनपद, पांचाल जनपद, सूरसेन जनपद आदि। 
  • प्रमुख फसल - चावल, गेंहू, तिलहन, दाल आदि। 
  • लोहे का उपयोग करने लगे, इसे वे लोग ’लौह अयस", "कृष्ण अयस’’ या "कृष्ण धातु" कहते थे। 
  • पारिवारिक व्यवस्था में सभी भाई व पीढ़ी के लोग एक परिवार में रहते थे, बुजुर्ग पुरूष परिवार का मुखिया होता था उसे ’’गृहपति’’ कहा जाता था। ज्यादातर गृहपति पशुपालन और खेती करते थे, इन्हें ’वैश्य’ कहा जाता था तथा इनके आसपास रहने वाले लोगों को ’सेवक’ कहा जाता था। 
  • मनुष्य का जीवन 4 आश्रम में बंटा हुआ था- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास। 
  • जनपद के मुखिया को ’’राजा ’’ कहा जाता था तथा उसके परिवार के लागों को ’’राजन्य’’ कहा जाता था। गृहपतियों द्वारा दिये गये भेंट से राजा का और राज्य का खर्चा चलता था। युध्द में सभी की भागी दारी होती थी। 
  • राजा व राजन्य बडे-बडे यज्ञ करने लगे थे, जैसे- अश्वमेध, राजसूय आदि। 
  • समाज चार वर्णों में बंटा था - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र। 
  • महाजनपद काल (600 ई.पू. से 325 ई.पू.):- लगभग 2600 वर्ष पहले उस काल में जनपदों का तेजी से विकास हुआ ,खेती समृध्द होने लगी ,गंगा-यमुना मैदानी क्षेत्र में विकास , दक्षिण बिहार (झारखंड) से प्राप्त लोहे से औजार बनाने के बाद जनपदों की शक्ति बढने लगी ,शक्तिशाली जनपद दूसरे जनपदों को जीत कर बडे़ और शक्तिशाली होते गये तथा महाजनपद का उदय हुआ। 
  • इस समय भारत में 16 महाजनपद थे। इनमें कुछ में राजतंत्र था जैसे अंग, काशी, कोसल, मगध आदि। कुछ में प्रजातंत्र जैसे वज्जि(वैशाली), शाक्य(कपिलवस्तु), मल्ल आदि प्रचलित थी। 
  • 16 महाजनपद - कंबोज, गांधार, कुरू, पांचाल, सूरशेन, कोसल, मल्ल, चेती, वत्स, वज्जि, अंग, काशी, मगध, अवंती, अस्मक, मत्स्य । 
  • मगध साम्राज्य को प्राकृतिक संपदा ने शक्तिशाली बनाया। 
  • बिंबिसार - मगध का पहला प्रमुख राजा , इन्होंने शक्तिशाली सेना बनाई, कोसल की राजकुमारी से विवाह कर काशी राज्य दहेज में प्राप्त किया फिर वैशाली की राजकुमारी से विवाह कर समर्थन लिया। दूरवर्ती जनपदों से मित्रता परंतु नजदीकी जनपदों पर चढ़़ाई कर लेता था उदाहरणतः अंग पर चढाई कर चंपा (राजधानी) पर अधिकार कर लिया। बिंबिसार एक योग्य शासक था उसकी राजधानी राजगृह थी, वह किसानों और व्यापारियों सें नियमित कर वसूल करता था। उसके राज्य में अपराधियों को कठोर सजा का प्रावधान था परंतु उसके ही पुत्र अजातशत्रु ने उसकी हत्या कर दी और राज्य हथिया लिया। 
  • अजातशत्रु - अपने पिता की नीतियों पर चलते हुए मगध राज्य का विस्तार किया, वज्जि(वैशाली) में फूट डालकर अपने राज्य में मिला लिया। इनके शासन काल में राजगृह के निकट सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौध्द सम्मेलन हुआ था। 
  • नंद वंश - नंद वंश के संस्थापक शासक महापद्मनंद थे। विशाल सेना के बल पर इस वंश ने उत्तर भारत के कई राज्यों तथा दक्षिण में कलिंग को जीत लिया। अंतिम शासक धननंद थे जो कि अपने प्रजा पर अत्याचार करता था, धननंद को चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने मारकर मौर्य वंश की स्थापना की। 
  • महाजनपद काल के प्रमुख नगर - उज्जैन(म.प्र.), चंपा, वैशाली, राजगृह (बिहार) आदि। 
  • इस काल में चांदी व तांबे के सिक्कों का चलन शुरू हुआ, ठप्पा लगाकर इन्हें आहत सिक्कें कहा जाता था। 
  • कर के रूप में किसानों को उपज का छठवां हिस्सा कर देना होता था। 
  • सिकंदर - यूनान के मकदूनिया राज्य का राजा था। 326 ई.पू. में पंजाब में आक्रमण कर वहां के राजा पोरस को हराया बाद में पोरस के जवाब से खुश होकर उससे मित्रता कर ली। सेना के आगे बढने के इंकार करने से वापस लौट गया। 

  • जैन धर्म - स्वामी महावीर जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थें, इनका जन्म 540 ई.पू. में वैशाली के निकट हुआ था इनके पिता सिध्दार्थ और माता त्रिशला थीं, इनके बचपन का नाम वर्धमान था। जब बड़े भाई की आज्ञा लेकर संन्यास धारण किया तब इनकी उम्र 30 वर्ष थी। 12 वर्ष की तपस्या पश्चात् कैवल्य प्राप्त। 72 वर्ष की आयु में पावापुरी में निर्वाण। 
  • त्रिरत्न - सम्यक् ज्ञान (सत्य और असत्य का ज्ञान होना), सम्यक् दर्शन् ( सच्चा ज्ञान ) ,सम्यक् चरित्र ( अच्छा कार्य करना और गलत त्यागना ) 
  • पंच महाव्रत - 1. सत्य, 2.अहिंसा, 3. अस्तेय (चोरी न करना), 4. अपरिग्रह (धन का संग्रह न करना ), 5.ब्रम्हचर्य पंच महाव्रत के पालन से ही त्रिरत्न की प्राप्ति होती है। 
  • जैन धर्म के सिध्दांतों को “आगम” ग्रंथों में संग्रह किया गया है। 
  • जैन धर्म को व्यापारी और शासक वर्ग से विशेष आश्रय प्राप्त था। 
  • छ.ग. के आरंग में प्राचीन जैन मंदिर है। दुर्ग जिले के नगपुरा में 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी का प्राचीन मंदिर स्थित है इसे "उवसंग्हर पार्श्वनाथ " तीर्थ कहा जाता है।

शेष तथ्य history overview - II में
सौजन्य :- सभी चित्र गूगल से ढूंढे गए हैं एवं समस्त तथ्य छत्तीसगढ़ बोर्ड से लिए गए हैं।  

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